उन दीनो मैं सपरिवार तहरी हाइड्रो के ऑडिट
पर ऋषिकेश गया हुआ था. ऋषिकेश में गंगा नदी के किनारे टिहरी हाइड्रो का गेस्ट हाउस
था, जहा हम रुके हुए थे.
उन दीनो तहरी में दम बनाने का कम चल रहा था. गेस्ट हाउस में सभी आधुनिक सुख सुविधा उपलब्ध थी. पास ही गंगा
नदी का किनारा था ओर हिमालय के उन्नत सिकहर
रत को बहुत ही रहस्यमय लगते थे .
रत
को खाना खाने के बाद मुझे टहलने की अदास्त थी.उस
रत खाना खाने के बाद टहलते हुए गंगा
के किनारे तक निकल गया और मुझे एहसास हुआ की
दूर दूर तक किसी का नाम निसन नही था. मैं गेस्ट हाउस की तरफ वापिस लौट चला. तभी दूर
से मुझे एक आकृति अपनी ओर आती हुई नज़र आई. दूरी कुछ कम होने पर मुझे ऐसा लगा जैसे
वह आकृति पारो से चलने की बजाए ज़मीन से कुछ
उपर लहराती हुई चल रही है. कुछ ही पल में वह आकृति मेरे समीप आ गयी ओर उस के चेहरे
परनीगाह पड़ते ही जैसे मेरे पार ज़मीन पर जड़ हो गये. मेरे सामने करीब बीस साल पहले
स्वरगवसी हो चुकी मेरे दादी सासरीर खड़ी थी.उन के सफेद बाल खुले ओर हवा में लहरा रहे
थे ओर मुझे अजीब सी नज़र से देखते हुए वह साया लहराता हुआ कुछ ही पल में मेरी नज़रो
से ओझल हो गया. मुझे अपनी आँखो पर यकीन नही हो रहा था. मैं तेज़ी से चलता हुआ गेस्ट
हाउस वापिस आ गया ओर अपनी पत्नी वंदना को इस घटना के बारे में बताया तो वह भी हैरान
रह गयी ओर आगे से मूजग को रत के समय गंगा नदी
के किनारे ना जाने के लिए कहा.
आज तक जब भी मैं इस घटना के बारे में सोहता
हू तो तो असमंजस में पद जाता हू की वह घटना सच थी या सपना.
राजीव जायसवाल
राजीव जायसवाल
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